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क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती

क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती…
ये मुस्कुराना, खिलखिलाना,
नज़रों से नज़रें मिलाना,
सब कुछ यूँ ही छूट जाती,
क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती…

ये डर हर पल डराये जाती है,
धड़कनों को आग सी जलाये जाती है,
ये सब्र कभी दिल को हो नहीं पाता,
जब मै ही तू हूँ,
फिर क्यूं मुझे सताए जाती है,
ये धड़कन, ये सब्र यूँ ही टूट जाती,

क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती…
ये मुस्कुराना, खिलखिलाना,
नज़रों से नज़रें मिलाना,
सब कुछ यूँ ही छूट जाती,
क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती…

कुछ पल की नज़र ही काफी होती है,
नज़रों को समझाने के लिए,
तेरी जुस्तजू, तेरी आरज़ू को
यादों में बसाने के लिए,
उस आहट को मुस्कराहट को
समझता हूँ मैं
लेकिन कुछ पल होते ही ऐसे हैं,
धड़कनों को जलाने के लिए,
ये संजीदगी, ये शर्माहट
यूँ ही लूट जाती,

क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती…
ये मुस्कुराना, खिलखिलाना,
नज़रों से नज़रें मिलाना,
सब कुछ यूँ ही छूट जाती,
क्या होता कहीं तू यूँ ही रूठ जाती…

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