प्रेम: ईर्ष्या दिल का (हां हो रही है जलन मुझे)

मैं भोला हूँ, कच्चा हूँ,
कुछ झूठा हूँ, कुछ सच्चा हूं,
लेकिन कुछ बातें हैं
जहां देख नहीं सकता तुझे,
हां हो रही है जलन मुझे…

ये आँखों-आँखों की जो बातें हैं,
बस यहीं हम दोनों की मुलाकातें हैं,
तेरा हंसना, मायूस होना
सब कुछ मैंने बांटे हैं,
बस कुछ तुम समझ पाती तो
कुछ पता ही नहीं चलता तुझे,
हां हो रही है जलन मुझे…

कुछ भी सुनना खिलाफ तुम्हारे
गँवारा नहीं दिल को,
एक अजीब सी उलझन में फंस के रह जाता हूँ,
बातें चाहें छोटी हों या फिर बड़ी
सुलझाने में लग जाता हूँ
उसमें भी ये उपेक्षा तेरा क्यों न तड़पाये मुझे,
हां हो रही है जलन मुझे….

हो भी क्यूं ना ये बातें,
जब चाहता हूँ बस मैं और सिर्फ मैं ही तुझसे मुलाकातें,
लेकिन ये कुछ नज़रअंदाज़ करना तेरा,
झुकाती हैं किसी और ओर तुझे,
हो भी क्यूं न ये जलन मुझे…

मालूम है तेरा चुपके से देखना मुझे,
नजरें मेरी भले कहीं हों हर पल निरेखतीं हैं तुझे,
हर एक गतिविधि पर रहता है ख्याल मेरा
भले ये बातें मालूम न तुझे,
हां हो रही है जलन मुझे….

तेरी हर एक ख्वाहिश को
ख्वाब में सजाता हूँ मैं,
वो सारी खुशियां तेरी होंगी,
ये ‘आज’ को बताता हूँ मैं,
फिर भी तेरा बहकना कैसे ये दिल बुझे,
हां हो रही है जलन मुझे…

बातें चाहें जो भी हो तुमसे
एक अलग उमंग देती हैं मुझे,
काम की हो या बेकार की
बस रंग देती हैं मुझे,
इस नशे का या फिर लत का
दिल से ये आग क्यों बुझे,
हां हो रही है जलन मुझे…..

ऐसा नहीं कि तुझसे कभी लड़ना
दुःख नहीं देता मुझे,
बस रोता नहीं पर दिल का हाल
क्या बताऊ तुझे,
काश ये माजरा हर वक्त
समझ में आता तुझे,
हां हो रही है जलन मुझे…..

कल बैठा था सामने तेरे
नजरें मेरी तुझी पर थीं,
याद है नजरें एक बार मिली थीं,
मगर तू थोड़ी कशमकश में थी,
फिर दिखा कर किसी और से मुस्कुराना,
कैसे न खिझाये मुझे,
हां हो रही है जलन मुझे…

यदि नहीं है मोहब्बत हमसे
और करनी है दीवानगी की परख,
तो बन जाता हूँ मैं तुम
और तू अपने को मेरी जगह रख,
फिर दिखाऊंगा जलवा अपना,
हो जाएगी खबर तुझे,
हां हो रही है जलन मुझे….

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