उम्मीद और अफसाना

उम्मीद और अफसाना,
शब्द ही तो हैं पर
एक कसक प्यार और विश्वास का
झकझोर के
पल-पल क्षण-क्षण के बनाये
सारे सपने तोड़ के
उम्मीद यादों को
अफसाना बना देती है।

उम्मीद स्वर्ग का एहसास है तब
जब जरा उतरे
उम्मीद प्यार की गहराई है तब
जब खरा उतरे
तुम्हारे पल पल के एहसास को
नजराना बना देती है।
पर उतरे जब नजरों से
अफसाना बना देती है।

सुबह में ताज को देखता हूँ
तुम्हारी हर एक एहसास में,
कई बार हीर आ जाती है
दिन में हर साँस में
पर शाम होते ही सब
अन-जाना बना देती है
उस पल उस ख्वाब को
अफसाना बना देती है।

उम्मीद तो है इन आँखों को
देखूं उन आँखों में
खो जाऊं ख्वाब सा
कुछ खास-पल के बरसातों में
ये दिल्लगी दीवानों सी
दीवाना बना देती है
हर रोज इस उम्मीद को
अफसाना बना देती है।

1 thought on “उम्मीद और अफसाना”

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