बसंत का मौसम, जब सूरज की पहली किरण चारों ओर एक अलग खूबसूरती बिखेर रही थी। बड़े दिनों बाद मुझे प्रकृति की सुंदरता का दर्शन करने का मौका मिला था नहीं तो रात-दिन शहर के ऑफिस में ही गुजरता था। एक बागीचे से हो कर जाते हुए उस सुनहरे मौसम में सुबह की खुशबू जो हरे भरे पेड़ों और फूलों से मिश्रित हो कर आ रही थी इस एहसास को भला कौन नहीं समझ सकता है। मैं भी उसी फिजां में गुम बगीचे को पार कर रहा था। अभी मैं बगीचे के उत्तरी कोने पर पंहुचा था जहां पर पश्चिम से आती हुई एक कच्ची सड़क दोनों तरफ सरसों के फूलों से घिरी हुई एक अलग उमंग भर रही थी और उस पर सुबह की पहली किरण।
वही सूर्य की पहली किरण ने एक खूबसूरत चेहरे पर अपनी पहली रौशनी बिखेरी थी जो टकरा कर सीधे मेरे पास आयी थी। पश्चिम दिशा से आती हुई वो लड़की जिसका चेहरा सूर्य की लालिमा में लालिमा लिए हुए मुस्कुरा रहा था, एक अलग ही खूबसूरती बिखेर दी थी। उसका वो अपना हाथ कभी बालों पर तो कभी चेहरे पर फिराना एक अलग खूबसूरती दे रही थी उसे जो दिल को छू जा रही थी। यह एक ऐसा आकर्षण था कि मैंने पहली ही नजर में उससे दोस्ती का ख्याल भी बुन लिया। इसके बाद किसी न किसी बहाने मैंने काफी देर उसका अनुसरण किया। अंत में वह एक झोपड़पटी के पास पहुंची और उसमेँ प्रवेश कर गयी। उस झोपड़ी में प्रवेश करने से पहले उसने कुछ पीली सी चीज अपने दुप्पटे से बाहर निकाली थी जो कुछ पक्के हुए आम थे।
“कौन हो तुम?”, एक अजीब सी हलचल थी मन में उसके बारे में जानने की। मैं पिछले ३ दिनों में उसे इधर कभी नहीं देखा था लेकिन अब मैं किसी हाल में उसके बारे में सब कुछ जानना चाहता था। खैर वो अधखुली झोपड़ी का एक नजारा था जब उसने उस सुन्दर और पीले पक्के हुए आमों को एक बुजुर्ग महिला को अर्पित किया जो वह चटाई पर लेती हुई थी। उसने उसका चरण स्पर्श किया और कहा, “दादी अम्मा, मैं ये पक्के हुए आम विशेष तौर पर आपके लिए इक्कठा करके लायी हूं और आपको जरूर इसे खाना चाहिए। यह आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होगा”।
इसी तरह कुछ देर बातें होती रही और फिर उसने दादी माँ से कहा,”अच्छा दादी मां, मुझे कॉलेज जाना है देर होगी, जल्दी मिलते हैं, अपना ख्याल रखियेगा”। वो जाने वाली थी और मैं अपने आप को उसकी आँखों से छुपा रहा था ताकि वो मुझे देख न सके। वो चली गयी थी और मुझे उसके बारे में बहुत कुछ जानना था। मैं भी उस झोपड़ी में गया … जारी है…